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न्यायालय अवमान क्या है एंव इसके प्रकार | Contempt of Court in Hindi

न्यायालय अवमान क्या है?

न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 2(क) के अनुसार न्यायालय अवमान से सिविल एवं आपराधिक अवमान अभिप्रेत है लेकिन यह शाब्दिक परिभाषा नहीं है।

वस्तुतः न्यायालय के अवमान से तात्पर्य –

(i) न्यायालय के आदेशों एवं निर्णयों की साशय अवज्ञा करना, अथवा

(ii) न्यायालय के कार्य में विघ्न उत्पन्न करना, अथवा

(iii) न्यायाधीशों के साथ अभ्रद व्यवहार करना है।

न्यायालय के अवमान के लिए अधिवक्ता या किसी व्यक्ति द्वारा माननीय न्यायालय के आदेशों, निर्णयों, उनके कार्यों आदि की साशय अवज्ञा किया जाना अपेक्षित है।

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न्यायालय अवमान के प्रकार

न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 2(क) के अनुसार अवमान दो प्रकार का होता है –

(i) सिविल अवमान (Civil Contempt)

न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 2 (ख) के अनुसार, सिविल अवमान से किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री आदेश, रिट या अन्य आदेशिका को जानबूझकर अवज्ञा करना या न्यायालय से किये गये किसी वचनबंध का जानबूझकर भंग करना अभिप्रेत है।

सिविल अवमान के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, सिविल अवमान के लिए न्यायालय के आदेश की जानबूझकर एवं स्वेच्छया अवज्ञा किया जाना अपेक्षित है।

(ii) आपराधिक अवमान (criminal contempt)

न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 2 (ग) के अनुसार आपराधिक अवमान से किसी भी ऐसी बात का, चाहे वह बोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा, संकेतों द्वारा, दृश्यरूपेण द्वारा प्रकाशन अथवा किसी अन्य ऐसे कार्य को करना अभिप्रेत है –

(i) जो किसी न्यायालय को कलंकित करता है या

(ii) किसी न्यायिक कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है या

(iii) जो न्याय प्रशासन में अन्यथा हस्तक्षेप या विघ्न/बाधा उत्पन्न करता है

न्यायाधीश को गालियाँ देना तथा उसके प्रति अश्लील भाषा का प्रयोग करना भी न्यायालय का अवमान माना जाता है

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अधिवक्ता द्वारा अवचार एवं अधिवक्ता द्वारा न्यायालय की अवमानना में अन्तर

अधिवक्ता द्वारा अवचार एवं अधिवक्ता द्वारा न्यायालय के अवमान में कोई विशेष अन्तर नहीं है। एक अधिवक्ता द्वारा किया गया कदाचार उसके द्वारा अपने कानूनी अभ्यास के दौरान किए गए किसी भी अनुचित व्यवहार या पेशेवर नैतिकता के उल्लंघन को संदर्भित करता है।

शब्द अवचार (Misconduct) का अर्थ एवं क्षेत्र अवमान (Contempt) से व्यापक है। प्रद्मयः प्रत्येक अवमान अवचार की परिधि में आता है, लेकिन प्रत्येक अवचार न्यायालय का अवमान हो, यह आवश्यक नहीं है।

इसमें बेईमानी, गोपनीयता का उल्लंघन, परिश्रम की कमी, हितों का टकराव या कोई अन्य व्यवहार जो कानूनी नैतिकता के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है उनको शामिल किया जाता हैं।

दूसरी ओर, एक अधिवक्ता द्वारा न्यायालय की अवमानना ​​में ऐसे कार्य शामिल होते हैं, जो अदालत के अधिकार या गरिमा की अवहेलना या अनादर करते हैं।

इसमें न्यायालय आदेशों की अवज्ञा करना, न्यायाधीश या अदालत के कर्मचारियों के प्रति अनादर दिखाना, अदालती कार्यवाही में बाधा डालना या न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करने वाले बयान देना जैसे कार्य शामिल होते हैं। 

महत्वपूर्ण अन्तर –

अधिवक्ता द्वारा अपने विधिक एव नैतिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं करना या उनका उल्लंघन करना अवचार (Misconduct) माना जाता है। यह न्यायालय के बाहर भी हो सकता है और भीतर भी।

जबकि अवमान (Contempt) में न्यायिक कार्यवाहियों में बाधा डालना, न्यायाधीशों पर मिथ्या लांछन लगाना, न्यायालय में अश्लील, अभद्र एवं असंसदीय भाषा का प्रयोग करना आदि आता है। न्यायालय के आदेशों की अवज्ञा करना भी अवमान माना जाता है।

अवचार के मामलों में कार्यवाही विधिज्ञ परिषदों की अनुशासन समितियों द्वारा की जाती है, जबकि अवश्मन के मामलों में कार्यवाही स्वयं न्यायलय द्वारा की जाती है।

निष्कर्ष में,

एक अधिवक्ता द्वारा कदाचार कानूनी पेशे के भीतर नैतिक उल्लंघन से संबंधित है, जबकि एक अधिवक्ता द्वारा न्यायालय की अवमानना ​​में ऐसे कार्य शामिल हैं जो सीधे अदालत के अधिकार या अखंडता को चुनौती देते हैं।

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