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कम्प्यूटर नेटवर्किंग किसे कहते है? नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है एंव इसके विभिन्न प्रकार

इस आलेख में कम्प्यूटर नेटवर्किंग किसे कहा जाता है? तथा कम्प्यूटर नेटवर्किंग कितने प्रकार की होती है और नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है एंव इसके विभिन्न प्रकार के बारे मे बताया गया है

कम्प्यूटर नेटवर्किंग (Networking of Computer)

किसी एक ही प्रक्रिया से जुड़े निकायों का आपस में जुड़ा होना उसकी नेटवर्किंग कहलाती है। इसी प्रकार कम्प्यूटर नेटवर्क आपस में जुड़े हुए कम्प्यूटरों का एक जाल है जो कि भौगोलिक रूप से अलग-अलग स्थानों पर रखे होते हैं।

कम्प्यूटर एक दूसरे से कम्यूनिकेशन लिंक से जुड़े होते हैं और ऑटोनोस होते हैं।

कम्प्यूटर नेटवर्क सुचारु रूप में कार्य करें इसके लिए नेटवर्क में बहने वाले ट्रैफिक के कुछ नियमों का पालन करना होता है। प्रोटोकॉल द्वारा प्रत्येक कम्प्यूटर एक-दूसरे में स्टोर प्रोग्राम, डाटा फाईलों तथा हार्डवेयर युक्तियों का भी प्रयोग कर सकता है।

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कम्प्यूटर नेटवर्किंग का अध्ययन

कम्प्यूटर नेटवर्किंग का अध्ययन हम निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत करेंगे –

(i) नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology)

कम्प्यूटर नेटवर्किंग टोपोलॉजी का तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसके तहत नेटवर्क में उपस्थित विभिन्न कम्प्यूटर एक दूसरे से सम्पर्क स्थापित करते हैं।

टोपोलॉजी उन कम्प्यूटरों के बीच कम्युनिकेशन का मार्ग निर्धारित करती है। सामान्यतः प्रयोग में आने वाली टोपोलॉजो निम्न प्रकार हैं –

(a) स्टार टोपोलॉजी (Star Topology)

स्टार टोपोलॉजी में एक केन्द्रीय कम्प्यूटर होता है जो कि प्रत्येक स्थानीय कम्प्यूटर से जुड़ा होता है। नेटवर्क में स्थानीय कम्प्यूटरों से सीधा लिंक नहीं होता, वे केवल केन्द्रीय कम्प्यूटर के माध्यम से ही एक दूसरे से सम्पर्क कर सकते हैं।

नेटवर्क की व्यवस्था व संदेशों के सुव्यवस्थित ट्रांसमिशन की जिम्मेदारी केन्द्रीय कम्प्यूटर की होती है।

इसके प्रयोग में यह फायदा होता है कि इसमें लाइनें कम होने के कारण न केवल लागत कम होती है वरन् किसी एक कम्प्यूटर के खराब हो जाने की स्थिति में भी पूरा नेटवर्क अप्रभावित रहता है।

किसी नये कम्प्यूटर को नेटवर्क से जोड़ना भी आसान है परन्तु पूरा नेटवर्क केन्द्रीय कम्प्यूटर पर आधारित होता है इसलिए केन्द्रीय कम्प्यूटर विश्वसनीय व उच्च गति एवं क्षमता वाला होना चाहिए।

(b) रिंग नेटवर्क (Ring Network)

इस नेटवर्किंग में केन्द्रीय कम्प्यूटर नहीं होता सभी स्थानीय कम्प्यूटर एक रिंग में आपस में जुड़े होते हैं। रिंग का नोड जब डाटा प्राप्त करता है तब ये निर्णय लेता है कि ये डाटा उसके लिए है या नहीं। यदि डाटा उसके लिए न हो तो वह उसे प्रयोग में लाये बिना नेटवर्क के अगले नोड की ओर भेज देता है।

इस प्रकार यह नेटवर्क स्टार टोपोलॉजी की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होता है क्योंकि कम्यूनिकेशन में सभी कम्प्यूटरों की सहभागिता होती है परन्तु किसी एक भी नोट के खराब हो जाने पर पूरा नेटवर्क रुक जाता है।

(c) बस नेटवर्क (Bus Network)

इस नेटवर्क में एक ही कम्यूनिकेशन चैनल को सभी कम्प्यूटरों द्वारा काम में लाया जाता है। यह एक ब्रॉडकास्ट नेटवर्क है जब नेटवर्क का कोई भी कम्प्यूटर उसे प्रयोग में लाना चाहता है तो वह पहले ये जाँच करता है कि चैनल ब्यस्त तो नहीं है।

जैसे ही चैनल खाली होता है कम्प्यूटर अपना संदेश ब्रॉडकास्ट कर देता है। चैनल पर प्रसारित प्रत्येक संदेश के लिए नेटवर्क का प्रत्येक कम्प्यूटर यह जाँच करता है कि संदेश में दिया पता स्वयं उसका है या नहीं और इस प्रकार संदेश गंतव्य स्थान तक पहुँच जाता है।

नेटवर्क कम्युनिकेशन की इस विधि को मल्टीप्वाइंट अथवा मल्टीड्रॉप नेटवर्क भी कहते हैं। इस प्रकार की टोपोलीजो का प्रयोग वहाँ किया जाता है जहाँ अत्यंत उच्च गति का कम्युनिकेशन चैनल एक छोटे सीमित क्षेत्र में प्रयोग में लाया जाता है।

उपग्रह कम्युनिकेशन में भी यही टोपोलॉजी प्रयोग में लाई जाती है परन्तु उसमें नेटवर्क नोड आपस में तारों से जुड़े नहीं होते। बस नेटवर्क अत्यधिक प्रचलित है क्योंकि इसकी लागत कम होती है तथा इसमें नये नोड को जोड़ना आसान है। किसी एक कम्प्यूटर के खराब होने से नेटवर्क प्रभावित नहीं होता।

(ii) कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल (Communication Protocol)

विभिन्न कम्प्यूटर जो आपस में जुड़कर कम्प्यूटर नेटवर्क बनाते हैं उसके मध्य सूचना का आदान-प्रदान सही होता रहे यह जिम्मेदारी संचार सॉफ्टवेयर की है।

इस सॉफ्टवेयर में ही वे नियम और विधियाँ निहित होती हैं जो कम्प्यूटरों को यह निर्देश देती है कि डाटा ट्रांसमिशन किस प्रकार हो और डाटा कम्युनिकेशन को नियंत्रित करती है। इन नियमों तथा विधियों के सैट को ही कम्युनिकेशन प्रोटोकोल कहते हैं।

यह डाटा कम्युनिकेशन सॉफ्टवेयर डाटा के त्रुटिरहित कुशल कम्युनिकेशन के लिए निम्न कार्य करता है –

(a) डाटा का क्रम निर्धारण (Sequence of Data)

एक लंबे संदेश को छोटे-छोटे ब्लॉक में बाँटा जाता है। ये निश्चित ब्लॉक आकार में पैकेट की तरह और प्रत्येक पैकेट को डाटाफ्रेम में बाँटा जाता है। प्रत्येक फ्रेम डाटा कम्युनिकेशन की इकाई होता है।

(b) डाटा का पथ निर्धारण (Path of Data)

सेन्डर एवं रिसीवर के बीच सर्वोत्तम, सरल एवं छोटे पथ के निर्धारण के लिए विशिष्ट एल्गोरिथ्म प्रयोग करते हैं।

(c) डाटा का प्रवाह नियंत्रण (Flow Control of Data)

यदि सेन्डर तेज गति से डाटा भेज रहा है और रिसीवर धीमा है तो प्रवाह नियंत्रण करना होता है जिससे ट्रैफिक सुचारु रूप से चलता रहे।

(d) डाटा की त्रुटि नियन्त्रण (Error Control of Data) –

संचार के दौरान डाटा में त्रुटि हो जाने पर उसे ज्ञात करना तथा उसका निवारण करना नेटवर्क की जिम्मेदारी है। प्राय: त्रुटिपूर्ण फ्रेम को वापस भेज दिया जाता है।

(e) संबंध स्थापित करना (Communication)

कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल का मुख्य कार्य है सेन्डर एवं रिसीवर के बीच संबंध स्थापित करना।

(f) डाटा की सुरक्षा (Security of Data)

डाटा की सुरक्षा एवं गोपनीयता बनाये रखना भी नेटवर्क की जिम्मेदारी है। डाटा अवांछित प्रयोगकर्ताओं को प्राप्त न हो सके इसके लिए डाटा कॉडिंग तथा संपीडन तकनीके प्रयोग की जाती है।

(g) डाटा का मैनेजमेन्ट (Management of Data) 

डाटा संचारण संबंधी सूचनाएँ रखना और आवश्यकतानुसार उन्हें उपलब्ध कराना भी डाटा कम्प्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर का कार्य है। यह सूचनाएँ आर्थिक दृष्टि से भी आवश्यक होती है।

(iii) ओपन सिस्टम इन्टर कनेक्शन (Open System Inter Connection) –

यह सिस्टम नेटवर्क प्रोटोकॉल से सम्बन्धित है। पूर्व में प्रत्येक नेटवर्क के अपने स्वयं के प्रोटोकॉल होते थे जैसे दर्पा का अरपनेट, आई. बी. एम. सिम्पल नेटवर्क आर्किटेक्चर तथा डीईसी का डिशनेट।

ये नेटवर्क एक-दूसरे के संगत नहीं थे इसलिए विभिन्न नेटवकों के बीच कम्युनिकेशन संभव नहीं हो पाता था। इस समस्या के निदान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानस संस्थान ने नेटवर्क संरचना के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय मानक दिया जिसे ओपन सिस्टम इन्टरकनेक्शन मॉडल (OSI – Open System Interconnection Model) कहा गया।

ओएसआई मॉडल के प्रोटोकॉल कहीं भी स्थित किन्हों भी दो असमान कम्पयूटर सिस्टम के बीच डाटा ट्रांमिशन को सुचारु रूप से चलाने के लिए बनाये गये हैं। इस मॉडल में कम्यूनिकेशन कार्यों को विभिन्न परतों में विभाजित कर दिया गया है। प्रत्येक परत अपने ऊपर की परत को निश्चित सेवायें देती हैं।

वास्तव में ऊपर की परत को निचली परत की कार्यप्रणाली को विस्तार से जानने की आवश्यकता नहीं रहती। कम्युनिकेशन में प्रयुक्त दोनों कम्प्यूटरों के मध्य जैसे कि प्रत्येक परत का अपनी संगत परत से उस परत के प्रोटोकॉल के अनुसार काल्पनिक कम्युनिकेशन होता है।

ओएसआई मॉडल के इस सात परती स्वरूप में वास्तविक डाटा ट्रांसमिशन केवल निम्नतम परत द्वारा अर्थात भौतिक परत के बीच होता है। विभिन्न परतों द्वारा निम्न कार्य किये जाते हैं –

(a) भौतिक परत (Physical Layer) 

यह परत संचारण को यात्रिक, भौतिक तथा बैद्युत कार्यों से संबंधित है। यह परत निर्धारण करती है कि किस प्रकार का माध्यम किस विधि से डाटा संचारण में प्रयुक्त होगा।

(b) डाटा लिंक परत (Data Link Layer) 

यह परत पैकेट को निश्चित आकार व स्वरूप के फ्रेमों में बाँट कर यह जिम्मेदारी निभाती है कि प्रत्येक फ्रेम एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक त्रुटि रहित पहुँच जाये। यह परत फ्रेम का गुम हो जाना अथवा दो या अधिक बार एक ही फ्रेम का पहुँचना जैसी त्रुटियों का निवारण करती है। इस परत की प्रवाह नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

(c) नेटवर्क परत (Network Layer)

यह परत प्रत्येक संदेश के लिए स्रोत और गंतव्य के बीच पथ निर्धारण करती है। ये पथ स्थिर भी हो सकते हैं और परिवर्तनीय भी। नेटवर्क परत का यह कार्य है कि संदेश को पैकेट में बाटे और प्रत्येक पैकेट में स्रोत तथा गंतव्य का पत्ता डाले। पैकेटों का क्रम निर्धारण तथा पथ-नियंत्रण भी यही परत करती है।

(d) ट्रांसपोर्ट परत (Transport Layer) 

सैन्डर और रिसीवर के बीच पथ निर्दिष्ट हो जाने पर ट्रांसपोर्ट परत पूरे सेशन के डाटा को स्रोत से गंतव्य तक पहुँचाने के प्रवाह का नियंत्रण करती है। विभिन्न संदेशों को एक चैनल पर मल्टीप्लैक्स करने का कार्य भी यही परत करती है।

(e) सेशन परत (Session Layer) 

लंबे संदेशों को सेशन में बाँटने और प्रत्येक सेशन के संचारण में संबंध स्थापित करने का कार्य भी यही परत करती है।

(f) प्रजेंटेशन परत (Presentation Layer) 

यह परत कांडांतरित डाटा को टर्मिनल पर वांछित रूप में प्रदर्शित करने का कार्य करती है। प्रेषण के समय डाटा की कोडिंग तथा संपीडन का कार्य भी यही परत करती है।

(g) एप्लीकेशन परत (Application Layer) 

यह परत प्रयोगकर्ता के लिए है। यह प्रयोगकर्ता को नेटवर्क सेवाएँ जैसे फाइल ट्रांसफर, ई मेल आदि प्रयोग करने की सुविधा प्रदान करती है।

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